परिचय
श्रीकांत बोला एक ऐसे इंसान हैं जिन्होंने नेत्रहीन होते हुए भी करोड़ों रुपए की कंपनी खड़ी कर दी और उनकी कंपनी में रतन टाटा ने भी 1.3 मिलियन डॉलर का इन्वेस्ट किया है । इस कंपनी के जरिए श्रीकांत बोला अपने जैसे शारीरिक रूप से अक्षम लोगों की मदद कर रहे हैं । आपको यह जानकर हैरानी होगी कि उनके माता-पिता एक किसान थे और और उनकी सालाना कमाई 20 हजार रूपए से भी कम थी ।
बचपन
श्रीकांत बोला का जन्म 7 जुलाई 1992 मैं आंध्र प्रदेश के सीतारामपुरम मछलीपट्टनम मैं एक छोटे से गांव में हुआ । जब श्रीकांत का जन्म हुआ तब वह जन्म से ही वह नेत्रहीन थे ।इसी कारण गांव वालोने और उनके रिश्तेदारों ने उनके माता-पिता से कहा कि यह लड़का आपका सहारा बनने की जगह एक दिन तुम्हारे ऊपर बोज बनेगा । ये तुम्हारे किसी काम का नही है । तुम इसे मार दो , इसे मार देना ही सही होगा ।
लेकिन श्रीकांत के माता पिता इस बात से सहमत नहीं थे । उन्होंने गांव वाले और रिश्तेदारों की बात अनसुनी कर दी । और श्रीकांत का पालन पोषण आम बच्चों की तरह करने लगे। श्रीकांत के माता-पिता एक किसान थे जो कि अपनी खेती से लगभग सालाना 20 हजार से भी कम कमा पाते थे ।
श्रीकांत बचपन में अपने अंधेपन के कारण किसी के साथ खेल नहीं पाता था और नाही दूसरे बच्चे उसके साथ खेलने के लिए राजी होते थे । इसीलिए उनके पापा उन्हें खेत में अपना हाथ बंटाने के लिए लेकर जाते थे । लेकिन अपने अंधेपन के कारण श्रीकांत कोई भी काम ठीक से नहीं कर पाते थे । इसीलिए उन्होंने श्रीकांत को पढ़ाई करने के लिए स्कूल भेजना ठीक समझा ।
शिक्षा
श्रीकांत के पिता ने उनका एडमिशन सरकारी स्कूल में कर दिया । जो कि उनके घर से काफी दूर था । इसीलिए श्रीकांत लकड़ी और दूसरे बच्चों के सहारे स्कूल जाने लगी थे । लेकिन स्कूल में उनकी मौजूदगी को कोई भी स्वीकार नहीं करता था। उन्हें हमेशा क्लास में लास्ट बेंच पर बिठाया जाता था । और उनके साथ स्कूल में कोई भी दोस्ती करने के लिए तैयार नहीं था । ऐसे में वह स्कूल में अकेलापन महसूस करने लगे ।
कुछ दिनों बाद उनके पापा को यह बात समझ में आ गई और उन्होंने श्रीकांत का एडमिशन हैदराबाद के एक दिव्यांग स्कूल में कर दिया । इस स्कूल में वह कुछ ही दिनों के अंदर ही बेहतर प्रोग्रेस देने लगे । स्कूल में रोते हुए उन्होंने चेस खेलना और क्रिकेट खेलना अच्छे से सीख लिया । और तो और वह क्रिकेट नेशनल लेवल तक खेले । स्कूल में वह अपने क्लास में फर्स्ट आने लगे थे । और दसवीं कक्षा में 90 % मार्क्स से पास आउट हुए ।
श्रीकांत के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के कारण उन्हें भारत के पूर्व राष्ट्रपति और साइंटिस्ट ए पी जे अब्दुल कलाम के साथ लीड इंडिया प्रोजेक्ट में काम करने की संधि प्राप्त हुई।
साइंस की पढ़ाई की
अपनी दसवीं कक्षा की पढ़ाई पूरी करने के बाद 11th स्टैंडर्ड मैं साइंस लेना चाहथे थे । लेकिन उनके अंधेपन के कारण कोई भी कॉलेज उन्हें एडमिशन देने के लिए तैयार नहीं था । उनका कहना था कि नेत्रहीन बच्चे साइंस नहीं ले सकते । इसके बाद उन्होंने निश्चय किया कि वह इसका विरोध करेंगे और उन्होंने पूरे 6 महीनों तक सरकार के खिलाफ इसका विरोध किया । और अकेले ही इसके खिलाफ लड़ते रहे ।
अंत में सरकार उन्हें साइंस की पढ़ाई करने की अनुमति दे दी । अनुमति मिलने के बाद उन्होंने आंध्रा के एक कॉलेज में अपना एडमिशन करवाया और अपनी साइंस की पढ़ाई करते रहे उन्होंने पढ़ाई में दिन रात एक कर दी और 12th स्टैंडर्ड मैं 98 % मार्क से पास आउट हुए ।
IIT मैं एडमिशन लिया
अपनी 12th स्टैंडर्ड साइंस की पढ़ाई खत्म करने के बाद उन्होंने आईआईटी करने के लिए भारत के लगभग सभी आईआईटी कॉलेज में एडमिशन लेने के लिए एप्लीकेशन किया । लेकिन नेत्रहीन होने के कारण उनका एप्लीकेशन रिजेक्ट कर दिया ।
और इसके बाद श्रीकांत ने अमेरिका के नामांकित MIT ( Massachusetts institute of technology ) यूनिवर्सिटी में एप्लीकेशन दिया । इस MIT यूनिवर्सिटी में उनका एप्लीकेशन स्वीकार किया । और उन्हें वहां पर एडमिशन मिल गया । अमेरिका के MIT कॉलेज में एडमिशन लेने के बाद वह इंडिया के पहले इंटरनेशनल नेत्रहीन छात्र बने जिन्हें अमेरिका के MIT यूनिवर्सिटी में एडमिशन मिला । उन्होंने वहां पर अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की ।
ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद अगर वह चाहे तो वही अमेरिका में अच्छी सैलरी के साथ जॉब कर सकते थे । लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया वह वापस इंडिया आए और अपने जैसे शारीरिक रूप से कमजोर लोगों की हेल्प करनी शुरू कर दी ।
समानवी सेंटर ऑफ चिल्ड्रन की स्थापना
उसके बाद उन्होंने ब्रेल प्रिंटिंग प्रेस, समानवी सेंटर ऑफ चिल्ड्रन की स्थापना की । इसके जरिए वह शारीरिक रूप से अक्षम छात्रों के लिए एजुकेशनल , वोकेशनल , फाइनेंसियल और रिहैबिलिटेशन सर्विस जैसी सेवाएं प्रदान करते थे । Sparsh shah 14 sal ka bacha jo wheelchair ke bina kuch nahi kar sakata hai fir bhi kaise kama raha hai karodo repay
Bollant industries company की स्थापना
2012 मैं उन्होंने 8 लोगों के साथ मिलकर बोलाना इंडस्ट्रीज की स्थापना की ।तब उनकी उम्र 21 के आस पास थी । यह कंपनी फूड पैकेजिंग पर आधारित उत्पादनों का निर्माण करती है। इस कंपनी का मुख्य उद्देश्य था कि अशिक्षित और अपंग लोगों को रोजगार मिले । उनकी कंपनी धीरे-धीरे बड़ी हो रही थी तब उन्होंने वेस्ट मटेरियल से उपयोग की जाने वाली उत्पादों को बनाना शुरू कर किया । जिससे पैकेजिंग मैटेरियल से डिस्पोजेबल मटेरियल तक शामिल थे उन्होंने अपनी कंपनी को और बड़ा करने के लिए उन्होंने फंडिंग कंपनियों और निजी बैंकों से पैसे लेने शुरू कर दिए । रतन टाटा ने भी उनके कंपनी में लगभग 1.3 मिलियन डॉलर का निवेश किया ।
रतन टाटा के निवेश करने के बाद उनकी कंपनी का टर्नओवर लगभग 155 करण उपयोग से भी ज्यादा है । और आज 5 शहरों में हूं कि कंपनी के प्लांट हैं और आज उनकी bollant industries मैं हजारों लोग कार्यरत है।
2017 मैं फ्रोब्र्स ने उन्हें एशिया के 30 साल से कम उम्र के उद्योगपति की सूची में शामिल किया है ।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें